यूसुफ जानते थे, कहकर भी राज निकाला जाता है; अगले सवाल से काम हासिल होगा।
कहा, "हमें आपसे राज मिलता रहना चाहिए। हम आपकी निजी उलझनों की मदद करेंगे।"
खोदाबख्श को जी मिला। पूछा, "जनाब का निजी और भी कुछ अगर मालूम किया जा सके?"
"बाद को, जब गठ जाए। आप समझें, हम कोई?"
"माजरा क्या है?"
"वह यह कि एजाज से सरकार की तरफ की सिखायी औरत भेजकर यह मालूम करना है कि क्या हालात हैं; बस।
अपनी तरफ से आप भी पता लगायें कि सरकार के खिलाफ क्या कार्रवाई है। मुसलमान और नीची कौमवाले हिंदू मिट्टी में मिल जाएँगे। आप याद रखिए। पहले किसी नीची कौमवाले को फँसाइए।"
खजानची को जँच गई। फड़ककर कहा, "कुछ पता भी आपका...'
"अभी नहीं। अस्सलाम वालेकुम्। खयाल में रखें।"
"वालेकुम्।"
प्रभाकर बैठा था। यूसुफ ने अतिथि-भवन की बैठक में झाँका। कहा, "आपसे मिलने के लिए मैनेजर साहब खड़े हैं।"
प्रभाकर चौंका। देखकर चुपचाप बैठा रहा। कुछ देर ठहरकर यूसुफ भीतर चलकर कुर्सी पर बैठे। कहा, "मैं उनका नौकर नहीं। खड़े हैं, कहा, कह दिया, अब आप समझें।"
प्रभाकर ने रीढ़ सीधी की और बैठा हुआ टुकुर-टुकुर देखता रहा।
दिलावर बाहर पहरेदार के पास बैठा था। यूसुफ को घुसते हुए देखा कि गारद से एक आदमी बुला लाया और लगा दिया। यूसुफ की निगाह चूक गई।
"जनाब का दौलतखाना?" यूसुफ ने पूछा।
"जनाब का शुभ नाम?" प्रभाकर ने पूछा।
"नाचीज हुजूर की खिदमत में।" यूसुफ ने जवाब दिया।
"रहमदिली?" प्रभाकर ने मुस्कराकर कहा।
"रहमदिली-अलअमाँ।" यूसुफ ने दोहराकर दोस्ती जतायी।
प्रभाकर दबा। उभरकर पूछा, "किस अंदाज से हैं?"
"सिर्फ दोस्ती।"
प्रभाकर ने हाथ बढ़ाया।
"यों नहीं।" यूसुफ ने बड़प्पन रखा, "आप कैसे तशरीफ ले आए?"